कृष्णचंद्र ‘भिक्खु’ के कथा-साहित्य में निरूपित आर्थिक-मूल्य
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Author(s):
DR. BIJENDER KUMAR
Vol - 6, Issue- 3 ,
Page(s) : 10 - 17
(2019 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSI
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Abstract
सामान्य रूप से अर्थ का तात्पर्य धन से लिया जाता है , लेकिन गुढ़ अर्थ में जिसके द्वारा हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं , वे सभी वस्तुएं धन का रूप ले लेती हैं । सब कालों में धन का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । व्यक्ति अर्थ-प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता रहा है । विचारणीय विषय यह है कि जिस अर्थ के लिए इतने कष्ट झेलता है और रात-दिन उसको पाने के लिए उत्सुक रहता है अन्तोगत्वा वह अर्थ है क्या ?
‘हिंदी शब्द सागर’ में अर्थ से तात्पर्य है – धन , संपत्ति । अर्थशास्त्र के अनुसार – मित्र , पशु , भूमि , धन-धान्य की प्राप्ति और वृद्धि । 1 ‘मानक हिंदी कोश’ में इसका तात्पर्य धन-संपत्ति से लिया गया है । 2
आचार्य कौटिल्य ने अपने ‘कौटिल्यशास्त्र’ में अर्थ की परिभाषा इस प्रकार लिखी है - मनुष्यों की जीविका को अर्थ कहते हैं । आचार्य कौटिल्य ने इस प्रकार अर्थ की परिभाषा दो प्रकार से मानी है – 1. जीविका एवं 2. भूमि । जीविका और भूमि का संबंध मनुष्य से जोड़ा गया है , क्योंकि अर्थ और भूमि का लाभ मनुष्य के उपयोग और उपभोग के लिए ही होता है ।
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